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क्यों लगने लगा है केजरीवाल का संघर्ष छलावा ? “Jagran Junction Forum”

Ratan Singh Shekhawat
Ratan Singh Shekhawat
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जिस मीडिया, सोशियल मीडिया व युवा शक्ति के समर्थन के दम पर केजरीवाल ने अन्ना के साथ सफल लोकपाल आन्दोलन चलाया और उसी समर्थन के भरोसे आम आदमी पार्टी “आप” का गठन किया| आज केजरीवाल के अनशन पर उसी मीडिया ने जहाँ दुरी बना रखी है वहीँ सोशियल साईटस पर लोकपाल आन्दोलन के समर्थन में अभियान चलाने व सड़कों पर उतरकर समर्थन देने वाली युवा पीढ़ी ने एक और केजरीवाल के अनशन से दुरी बना रखी वहीँ दूसरी और वही युवा जो सोशियल साईटस पर उसके पक्ष में अभियान चला रहे थे वे आज केजरीवाल के खिलाफ तरह तरह की टिप्पणियाँ कर उसके विरोध में खड़े नजर आ रहे है|
ऐसा नहीं कि युवावर्ग सोशियल साईटस पर सिर्फ विरोध ही जता है बल्कि केजरीवाल व “आप” पार्टी से कई सवाल भी पूछ रहा है पर सोशियल साईटस पर मौजूद “आप” के कार्यकर्त्ता ऐसे युवाओं के सवालों का शालीनता के साथ जबाब देकर उनकी जिज्ञासा मिटाने के बजाय अशालीन होकर उलझते देखे जा सकते है| सोशियल साईटस पर ही क्यों अनशन स्थल पर भी आप के कार्यकर्ताओं द्वारा मीडियाकर्मियों के साथ उलझने के कारण मीडियाकर्मी “आप” के कार्यकर्मों से दुरी बनाने में ही अपनी भलाई समझ रहे है|

केजरीवाल के आन्दोलन के प्रति युवाओं के बदले दृष्टिकोण ने एक नई बहस को जन्म दिया है जागरण जंक्शन फोरम ने तो “क्या अरविंद केजरीवाल का संघर्ष एक छलावा है ?” नामक शीर्षक पर विचार करने हेतु युवाओं व ब्लॉग लेखकों से उनके विचार आमंत्रित किये है| यहाँ भी मैं कुछ कारणों व युवाओं के संदेह व उनके द्वारा उठाये गए प्रश्नों पर चर्चा कर रहा हूँ जो युवावर्ग सोशियल साईटस पर अभिव्यक्त कर रहे है-

१- आप पार्टी का विरोध करने वाले युवाओं को “आप” के कार्यकर्त्ता लताड़ते हुए कहते है कि- “एक व्यक्ति ने जनता के लिए जीवन दांव पर लगा रखा है और आप उसका विरोध कर गलत कार्य कर रहे है|”

इसके जबाब में ज्यादातर लोगों को प्रश्न होता है कि – “बाबा रामदेव भी तो जनता के लिए मरने (आन्दोलन करने) दिल्ली आया था तब उसे केजरीवाल ने समर्थन क्यों नहीं दिया ? जबकि रामदेव भी तो देश के भले के लिए ही सरकार से लड़ रहे थे|” पर इसका जबाब आप के कार्यकर्ताओं के पास नहीं है| साथ ही बहुत से युवाओं का मानना है कि हो सकता है केजरीवाल खुद ईमानदार हो, पर हर सीट पर तो अकेले केजरीवाल तो चुनाव नहीं लड़ सकते, उसके लिए उम्मीदवार चाहिए और क्या जरुरी है कि केजरीवाल जिन्हें चुनाव में उतारेंगे वे ईमानदार ही हो ?

२- लोकपाल आन्दोलन को भाजपा-संघ व वामपंथ सहित अन्य विभिन्न राजनैतिक विचारधारा वाले इनके सामाजिक कार्यकर्त्ता होने के चलते युवा व लोग समर्थन दे रहे थे पर केजरीवाल के राजनैतिक पार्टी बनाते ही युवा वर्ग ने अपनी अपनी राजनैतिक विचारधारा के आधार पर केजरीवाल का साथ छोड़ दिया| इस तरह लोकपाल आन्दोलन में समर्थन देने एकजुट हुआ युवावर्ग राजनैतिक विचारधारा के आधार पर विभक्त हो गया|

३- लोकपाल आन्दोलन में इनकी टीम के सदस्यों में स्वामी अग्निवेश, अरुणा राय आदि का कांग्रेस के साथ गुप्त गठबंधन सामने आने के बाद इनकी विश्वसनीयता कम हुई है| ज्यादातर लोग मानने लगे कि बाबा रामदेव द्वारा काला धन के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान की हवा निकालने के लिए अग्निवेश, अरुणा राय व केजरीवाल जैसे लोगों को आगे कर अन्ना द्वारा अनशन करवा रामदेव के आन्दोलन को हाईजेक कराने के लिए ये कांग्रेस का ही कोई गुप्त एजेंडा था|

४- अरुणा राय, अरुंधती राय, मयंक गाँधी, प्रशांत भूषण एंड संस का केजरीवाल के साथ होना भी युवाओं के मुंह फेरने का एक मोटा कारण है| अरुंधती व भूषण को उनके कश्मीर पर व्यक्त विवादस्पद विचारों की वजह से युवाओं का एक बड़ा तबका इन्हें राष्ट्र विरोधी मानता है|

५- फेसबुक पर कई युवा “आप” पार्टी के चुनाव लड़ने पर आंकलन कर लिख रहे है- “कांग्रेस से नाराज लोगों के वोट “आप” ले जायेगी जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा और आप की बदौलत दिल्ली में कांग्रेस की महा भ्रष्ट सरकार को चौथी बार फिर झेलना पड़ेगा|” इस आंकलन के आधार पर युवाओं को “आप” व कांग्रेस के बीच कोई गुप्त समझौता होने का संदेह है|

६- बदले की कार्यवाही के लिए कुख्यात सत्ताधारी पार्टी द्वारा अपने आलाकमान के परिवार पर सीधे आरोप लगाने के बावजूद केजरीवाल पर कोई बदले की कार्यवाही ना करना भी युवाओं के मन में दोनों दलों के बीच कोई गुप्त समझौता होने के संदेह को गहरा करता है|

इस संदेह को व्यक्त करते कई युवा फेसबुक पर सवाल करते है कि –“पूर्व आयकर अधिकारी देशबंधु गुप्ता द्वारा सरकार के खिलाफ बोलते ही उनके बेटे की सीआर ख़राब कर दी गयी और फंसा कर गुप्ता परिवार को परेशान किया गया फिर कांग्रेस पर एक के बाद एक इतने गंभीर आरोप लगाने के बावजूद केजरीवाल की पत्नी पिछले पन्द्रह वर्षों से एक जगह कैसे टिकी हुई है?”

७- सोशियल साईटस पर ही कई युवा केजरीवाल से सवाल करते है कि वे आयकर विभाग में उच्च अधिकारी थे जहाँ वे अपनी शक्तियों का सदुपयोग करते हुए कई भ्रष्ट नौकरशाहों व व्यापारियों पर कार्यवाही कर सकते थे पर क्या उन्होंने की ? कई युवा फेसबुक पर यह सवाल पूछते देखे गए कि- आयकर अधिकारी के रूप में केजरीवाल की उपलब्धिया क्या है?

८- केजरीवाल द्वारा अपने आपको धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए शाही इमाम जैसे व्यक्ति से मिलना भी युवाओं को रास नहीं आ रहा| कई युवाओं द्वारा अभिव्यक्त विचार पढने के बाद पता चलता है कि युवा केजरीवाल पर भी तुष्टिकरण की राजनीति करने का संदेह करते है| और केजरीवाल ने अपने क्रियाकलापों से इस संदेह को और गहरा ही किया है|

९- वर्तमान अनशन में सरकारी डाक्टरों की जगह प्राइवेट डाक्टर से अपने स्वास्थ्य की देखरेख करवाना और पानी पीने के लिए स्टील का गिलास रखने पर भी सोशियल साईटस पर युवाओं को चुटकियाँ लेकर मजाक उड़ाते देखने के बाद साफ़ लगता है कि युवावर्ग को यह अनशन दिखावटी ड्रामा लग रहा है|

कुल मिलाकर यही निष्कर्ष निकलता है कि केजरीवाल ने अन्ना, रामदेव आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं का साथ छोड़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आन्दोलन को अपनी व अपने साथियों की राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते कमजोर ही किया है| हो सकता है भविष्य में केजरीवाल एक राजनैतिक विकल्प देने में सफल हो जाये पर फ़िलहाल तो उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ उपजे गुस्से और आन्दोलन को अंकुरित होते ही राजनैतिक महत्वाकांक्षा के नीचे दबा ही दिया| और यही सब कारणों पर विचार करते हुए युवा केजरीवाल के आन्दोलन को छलावा समझ दूर होते जा रहे है|

युवावर्ग का सोचना भी सही है यदि केजरीवाल अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा छोड़ अन्ना, बाबा और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले संघ, वामपंथी कार्यकर्ताओं व अन्य ताकतों के साथ एक सामाजिक संगठन के बैनर तले ही अभियान चलाते रहते तो यह ज्यादा प्रभावी व देश हित में होता|

Read more: http://gyandarpan.com/2013/04/blog-post.html

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